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Channel: धरोहर
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ना जाने कितने मौसम बदलेंगे.....

ना जाने कितने मौसम बदलेंगे ना जाने कितने लोगों से कितनी मुलाकातें बची है? न जाने कितने दिन कितनी रातें बची हैं? ना जाने कितना रोना कितना सहना बचा है? कब बंद हो जायेंगी आँखें किस को पता है? कितने फूल...

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आनन्द प्रेम का...

आनन्द प्रेम का... असम्भव है  शब्दों में  बता पाना और ये भी कि  क्या है प्रेम का कारण...  यह गूंगे का गुड़ है  देह, मन, आत्मा का  ऐसा आस्वाद है  जिसके विवेचन में असमर्थ हो जाती इंद्रियां भी... अलसा जाती...

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जलता रहता है अलाव एक

जाने के बाद तुम्हारे अक्सर ख़्यालों में  तुमसे मिलकर लौटने के बाद हल्की-हल्की आँच पर खदबदाता रहता है तुम्हारा एहसास  लिपट कर साँसों से पिघलता रहता है कतरा-कतरा। बनाने लगती हूँ कविता तुम्हारे लिए अकेलेपन...

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हो रहे पात पीत

हो रहे  पात पीत सिकुड़ी सी  रात रीत ठिठुरन भी  गई बीत गा रहे सब बसंत गीत भरी है मादकता तन-मन-उपवन मे. समय होता  यहीं व्यतीत बौराया मन बौरा गया तन और बौराई टेसू-पलाश गीत-गात में  भर गई प्रीत -मन की उपज

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ना होती स्त्री मैं तो

सीमित हूँ  बहुत.....मैं शब्दों में.... अपने ही लेकिन, हूँ विस्तृत बहुत अर्थों में..... मेरे अपने ही... ना होती स्त्री  मैं  तो...कहो कहाँ होता...अस्तित्व  तुम्हारा.........भी मेरे होने से.... ही तुम...

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एक ख़त परमपिता परमेश्वर के नाम

हे परमपिता परमेश्वर श्रद्धेय हृदय वंदन। इस संसार की हम सभी महिलाएँ आपको धन्यवाद देना चाहती हैं कि आपने हमें अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति और सबसे खूबसूरत करिश्में के रूप में धरती पर भेजा है। आपने हमें वो तमाम...

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फिर...आपकी देह के इर्द-गिर्द... मन की उपज

जब आप बीमार रहते हैं तो बना रहता है हुजूमतीमारदारों का और ये.. वो ही रहते हैं जिनकी बीमारी में...आपने चिकित्सा व्यवस्था करवाई थी पर भगवान न करे...आपकी मृत्यु हो गई तो...वे आपको आपके घर तक पहुंचा भी...

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अहिल्या को नहीं भुगतना पड़ेगा.....मन की उपज

विडम्बना  यही है की  स्वतंत्र भारत में  नारी का  बाजारीकरण किया जा रहा है, प्रसाधन की गुलामी,  कामुक समप्रेषण  और विज्ञापनों के जरिये  उसका..........  व्यावसायिक उपयोग  किया जा रहा है.  कभी अंग...

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सरेआम भले ही हो....यशोदा

उसे पाने की  कोशिश का चढ़ा है नशा.. है आ रही महक गुलाब की रात देखा था  इक ख़्वाब सा किया था हमने इज़हार प्यार का कर रहा हूँ इन्तेज़ार तेरे इकरार का किया है इक वादा वफ़ा का पर.... पुरज़ोर कोशिश कि, मेरी...

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शब्दों का खेत

'शब्दों के खेत'में आओ खामोशियों को बोएँ तितलियों के पंखो को सपनो की जादुई छड़ी से सहलाएं.... अंतर्मन की आंखो से बीते हुए वक्त को सहेजें... कल-कल करती नदियों से उसकी सहजता का भेद पूछें.... लोरी की बोलों...

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तुमसे मिलने के बाद.......अज्ञात

तुम्हे जाने तो नही देना चाहती थी .. तुमसे मिलने के बाद पर समय को किसने थामा है आज तक हर कदम तुम्हारे साथ ही रखा था ,ज़मीं पर बहुत दूर चलने के लिए पर रस्ते भी बेवफा निकले समेट ली , अपनी लम्बाई फिर दूर...

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ज़िंदगी के मायने और है

आज की चाहतें और है कल की ख़्वाहिशें और हैं जो जीते है ज़िंदगी के पल-पल को उसके लिये ज़िंदगी के मायने और है हसरतें कुछ और हैं वक़्त की इल्तज़ा कुछ और है हासिल कुछ हो न हो उम्र का फलसफ़ा कुछ और है कौन जी सका...

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बड़प्पन

बड़प्पन मायके आयी रमा, माँ को हैरानी से देख रही थी। माँ बड़े ध्यान से  आज के अखबार के मुख पृष्ठ के पास दिन का खाना सजा रही थी। दाल, रोटी, सब्जी और रायता। फिर झट से फोटो खींच व्हाट्सप्प  करने लगीं। "माँ...

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हिन्दी में हैं हम..

हिस्सा है हिन्दी हमारे अस्तित्व का ... ये वो पुल है जो... ले जाती है सुखों तक पहुंचाती है हमें संतुष्टि के शिखरो पर जोड़ती है..हमें हमारी जड़ों से बताती है पता.. ज्ञान का..... जिसे संजोया गया है...

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जिजीविषा ....मन की उपज

स्त्रियों का हास्य बोध  और जिजीविषा गिन नहीं पाएँगे आप कितनों के निशाने पर रहती है स्त्री हारी नहीं फिर भी रहती है हरदम जूझती कभी हंसकर..तो कभी खामोशी से या फिर करके विद्रोह.. कारण है एक ही उसने हर तरह...

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स्त्री और सम्मान...

एक स्त्री के लिए  प्रेम से बढ़कर भी  कुछ हो सकता है,  तो वो है सम्मान  या रिस्पेक्ट..। क्षणिक हो सकता है प्रेम ..पर सम्मान नहीं होता  क्षणिक..वो क्यों दिखावटी हो सकता है प्रेम....पर सम्मान नहीं एक...

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वक़्त की हर गाँठ पर ....मन की उपज

वक़्त की हर गाँठ पर हँसते-मुस्कुराते जीने के लिए कुछ संज़ीदगी भी  जरुरी है। ये जो दौर है महामारी का वायरस के डंक से च़िहुँककर  दूर छिटकना लॉकडाउन के पिंजरें में फड़फड़ाना मजबूरी है। संज़ीदगी  मात्र सोच में...

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नारी की आकांक्षा

एक स्त्री के लिएप्रेम से बढ़कर भीकुछ हो सकता है,तो वो है सम्मानया रिस्पेक्ट..।क्षणिक हो सकता हैप्रेम ..परसम्मान नहीं होताक्षणिक..वो क्योंदिखावटी हो सकता हैप्रेम....परसम्मान नहींएक दिलचस्प बातकि ईश्वर ने...

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रसहीन उत्सव

बीत गईफीकी दीपावलीउत्साहविहीनसुविधा विहीनयंत्रवत जीवन जिया एक मशीन की तरहसुबह से शाम तकरात में भी सोने के पहलेएक चिंतन किकल की कल-कलमन में असंतोषखुशियाँ सारी समाप्त,मास्क पहननेऔर हाथ धोने मेंबची खुची...

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कोई कवि नहीं था,रावण के राज्य में

कोई कवि नहीं था रावण के राज्य में  भाषा थी सिर्फ़ लंकाईजो रावण और उसके क़रीबी दैत्य बोलते थेराम !तुम्हारे नहीं रहने के बाद भीतुम हो सर्वत्र,तो इसलिए भीतुम साहित्य में होकेवल भाषा में नहींवो भीइसलिए ही...

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